Tuesday, May 26, 2020

Dasbodh दासबोध Dashak 1 Samas 10

Dasbodh दासबोध Dashak 1 Samas 10

 जय जय रघुवीर समर्थ ॥ ॥श्रीमंत दासबोध

दशक पहिला समास दहावा

Samarth says in this Samasa that when this male body is found, some people will use it for the sake of devotion. Some will have the sounds of devotion, some will be very disgusted and will take shelter of the mountaineers. Some go on pilgrimage, some go on pilgrimage, some go on chanting the name with utmost devotion.Some live in the tools of heat, some good men practice yoga, while some become great scholars in Vedas by studying Since the level of human intellect and imagination is very high, only human beings can perform the actions of knowledge, such as understanding the meaning of the knowable things, discovering their intuition, seeing the unity of diversity, leaping from Santa to infinity, grasping the vast laws of the universe.Only human beings have the extraordinary ability to experience the true bliss of playing with themselves in the universe.



समर्थ या समासात सांगतात कि हा नरदेह मिळाल्यावर  त्याचा उपयोग करुन कोणी भक्तीच्या नादीं लागेल, कोणी अत्यंत विरक्त होउन डोंगरकपारींचा आश्रय घेऊन राहिले. कोणी भक्तीच्या नादीं लागेल, कोणी अत्यंत विरक्त होऊन डोंगरकपारींचा आश्रय घेऊन राहिले. कोणी तीर्थयात्रा करीत फिरतात, तर पुरशचरणें करतात, तर कोणी अत्यंत निष्ठेनें अखंड नामस्मरण करीत राहतात. कोणी तपाच्या साधनांत राहतात, कोणी उत्तम पुरुष योगाचा अभ्यास करतात, तर कोणी अभ्यास करून वेदशास्त्रांमध्ये मोठे विद्वान होतात.

माणसाच्या बुद्धीची व कल्पनेची पातळी अत्यंत उच्च प्रतीची असल्याने त्यास ज्ञेय अर्थ समजणे, त्यांचे अंतरंग शोधणे, अनेकात्वातील एकत्व पाहणे, सान्ताकडून अनंताकडे झेप घेणे, या विश्वाच्या अफाट नियमांचे आकलन करणे वगैरे ज्ञानाच्या क्रिया फक्त माणूसच करु शकतो. स्वतःसह विश्वाच्या अंतरंगात खेळणारे सच्चिदानंदस्वरुप प्रत्यक्ष अनुभवण्याचे विलक्षण सामर्थ्य फक्त माणसांतच आहे.

II  दासबोध दशक १ - स्तवननाम
     समास ९ - नरदेहस्तवन II

॥श्रीराम॥
धन्य  धन्य  हा  नरदेहो  |  येथील  अपूर्वता
पाहो | जो जो कीजे परमार्थलाहो | तो तो पावे सिद्धीतें ||१||

या नरदेहाचेनि लागवेगें | येक लागले भक्तिसंगें |
येकीं  परम वीतरागें | गिरिकंदरें  सेविलीं  ||२||

येक फिरती तिर्थाटणें | येक करिती पुरश्चरणें |
येक अखंड नामस्मरणें | निष्ठावंत राहिले ||३||

येक तपें करूं लागले | येक योगाभ्यासी माहाभले |
येक अभ्यासयोगें जाले | वेदशास्त्रीं वित्पन्न ||४||

येकीं हटनिग्रह केला | देह अत्यंत पीडिला |
येकीं  देव  ठाईं पाडिला | भावार्थबळें ||५||

येक माहानुभाव विख्यात | येक भक्त जाले ख्यात |
येक  सिद्ध  अकस्मात  |  गगन  वोळगती  ||६||

येक तेजीं तेजचि जाले | येक जळीं मिळोन गेले |
येक ते दिसतचि अदृश्य जाले | वायोस्वरूपीं ||७||

येक येकचि बहुधा होती | येक देखतचि निघोनि जाती |
येक बैसलें  असतांची भ्रमती | नाना स्थानीं समुद्रीं ||८||

येक भयानकावरी बैसती | एक अचेतनें चाल-
विती | येक प्रेतें उठविती | तपोबळेंकरूनी ||९||

येक तेजें मंद करिती | येक जळें आटविती |
येक वायो  निरोधिती  |  विश्वजनाचा ||१०||

ऐसे हटनिग्रही कृतबुद्धी | जयांस वोळल्या नाना
सिद्धी | ऐसे सिद्ध लक्षावधी | होऊन गेले ||११||

येक मनोसिद्ध येक वाचासिद्ध | येक अल्पसिद्ध येक सर्व-
सिद्ध | ऐसे नाना प्रकारीचे सिद्ध | विख्यात जाले ||१२||

येक  नवविधाभक्तिराजपंथें  |  गेले, तरले  परलोकींच्या
निजस्वार्थें | येक योगी गुप्तपंथें | ब्रह्मभुवना पावले ||१३||

येक वैकुंठास गेले | येक सत्यलोकीं राहिले |
येक कैलासीं बैसले | शिवरूप होउनी ||१४||

येक इंद्रलोकीं इंद्र जाले | येक पितृलोकीं मिळाले |
येक ते उडगणी बैसले | येक ते क्षीरसागरी ||१५||

सलोकता  समीपता  |  स्वरूपता  सायोज्यता  |
या चत्वारमुक्ती तत्वतां | इच्छा सेऊन राहिले ||१६||

ऐसे सिद्ध साधू  संत  |  स्वहिता  प्रवर्तले  अनंत |
ऐसा हा नरदेह विख्यात | काय म्हणौनि वर्णावा ||१७||

या नरदेहाचेनि आधारें | नाना साधनांचेनि द्वारें |
मुख्य  सारासारविचारें  |  बहुत  सुटले  ||१८||

या नरदेहाचेनि समंधें | बहुत पावले उत्तम पदें |
अहंता  सांडून  स्वानंदे  |  सुखी  जाले ||१९||

नरदेहीं येऊन सकळ | उद्धरागती पावले केवळ |
येथें  संशयाचें  मूळ  |  खंडोन   गेलें ||२०||

पशुदेहीं नाहीं गती | ऐसे  सर्वत्र बोलती |
म्हणौन नरदेहींच प्राप्ती | परलोकाची ||२१||

संत महंत ऋषी मुनी | सिद्ध साधू समाधानी |
भक्त मुक्त ब्रह्मज्ञानी | विरक्त योगी तपस्वी ||२२||

तत्त्वज्ञानी योगाभ्यासी | ब्रह्मचारी दिगंबर संन्यासी |
षट्‍दर्शनी  तापसी  |  नरदेहींच  जाले  ||२३||

म्हणौनि नरदेह श्रेष्ठ | नाना देहांमध्यें वरिष्ठ |
जयाचेनि चुके आरिष्ट  |  येमयातनेचें  ||२४||

नरदेह  हा  स्वाधेन  |  सहसा  नव्हे  पराधेन |
परंतु हा परोपकारीं झिजऊन | कीर्तिरूपें उरवावा ||२५||

अश्व वृषभ गाई म्हैसी | नाना पशु  स्त्रिया दासी |
कृपाळूपणें सोडितां त्यांसी | कोणी तरी धरील ||२६||

तैसा नव्हे नरदेहो | इछा जाव  अथवा राहो |
परी यास कोणी पाहो | बंधन करूं सकेना ||२७||

नरदेह पांगुळ असता | तरी तो कार्यास न येता |
अथवा थोंटा जरी असता | तरी परोपकारास न ये ||२८||

नरदेह अंध असिला | तरी तो निपटचि वाया गेला |
अथवा बधिर जरी असिला | तरी निरूपण नाहीं ||२९||

नरदेह असिला मुका | तरी घेतां नये आशंका |
अशक्त रोगी नासका | तरी तो निःकारण ||३०||

नरदेह  असिला  मूर्ख | अथवा  फेंपऱ्या  समंधाचें
दुःख | तरी तो जाणावा निरार्थक | निश्चयेंसीं ||३१||

इतुकें हें नस्तां वेंग | नरदेह आणी सकळ सांग |
तेणें  धरावा  परमार्थमार्ग  |  लागवेगें  ||३२||

सांग नरदेह जोडलें | आणि परमार्थबुद्धि विसर्लें |
तें  मूर्ख  कैसें  भ्रमलें  |  मायाजाळीं  ||३३||

मृत्तिका खानोन घर केले | ते माझे ऐसे दृढ कल्पिले |
परी  तें  बहुतांचें  हें कळलें  |  नाहींच तयासी ||३४||

मूषक म्हणती घर आमुचें | पाली म्हणती घर आमुचें |
मक्षिका  म्हणती  घर  आमुचें  |  निश्चयेंसी  ||३५||

कांतण्या म्हणती घर  आमुचें  |  मुंगळे म्हणती घर
आमुचें | मुंग्या म्हणती घर आमुचें | निश्चयेंसी ||३६||

विंचू म्हणती आमुचें घर | सर्प म्हणती आमुचें घर |
झुरळें  म्हणती  आमुचें  घर  |  निश्चयेंसी ||३७||

भ्रमर म्हणती आमुचें घर | भिंगोर्‍या म्हणती आमुचें
घर | आळिका  म्हणती आमुचें घर | काष्ठामधें ||३८||

मार्जरें म्हणती आमुचें घर | श्वानें म्हणती आमुचें
घर | मुंगसें म्हणती आमुचें घर | निश्चयेंसी ||३९||

पुंगळ म्हणती आमुचें घर | वाळव्या म्हणती आमुचें
घर | पिसुवा म्हणती आमुचें घर | निश्चयेंसी ||४०||

ढेकुण म्हणती आमुचें घर | चांचण्या म्हणती आमुचें
घर | घुंगर्डी  म्हणती आमुचें  घर | निश्चयेंसी ||४१||

पिसोळे म्हणती आमुचें घर | गांधेले म्हणती आमुचें
घर | सोट म्हणती आमुचें घर | आणी गोंबी ||४२||

बहुत किड्यांचा जोजार | किती सांगावा विस्तार |
समस्त म्हणती  आमुचें  घर  | निश्चयेंसी ||४३||

पशु म्हणती आमुचें घर | दासी म्हणती आमुचें घर |
घरीचीं  म्हणती  आमुचें  घर  |  निश्चयेंसी ||४४||

पाहुणे म्हणती आमुचें घर | मित्र म्हणती आमुचें घर |
ग्रामस्थ  म्हणती  आमुचें  घर  |  निश्चयेंसी  ||४५||

तश्कर म्हणती आमुचें घर | राजकी म्हणती आमुचें
घर | आग्न म्हणे आमुचें घर  |  भस्म करूं ||४६||

समस्त म्हणती घर माझें | हें मूर्खही म्हणे माझें
माझें | सेवट जड जालें वोझें | टाकिला देश ||४७||

अवघीं घरें भंगलीं | गावांची पांढरी पडिली |
मग तें गृहीं राहिलीं  |  आरण्यश्वापदें ||४८||

किडा मुंगी वाळवी मूषक | त्यांचेंच घर हें निश्चया-
त्मक | हें प्राणी  बापुडें मूर्ख | निघोन गेलें ||४९||

ऐसी गृहांची स्थिती | मिथ्या आली आत्मप्रचीती |
जन्म दों दिसांची वस्ती | कोठें तरी करावी ||५०||

देह म्हणावें आपुलें | तरी हें बहुतांकारणें निर्मिलें |
प्राणीयांच्या माथां घर केलें | वा मस्तकीं भक्षिती ||५१||

रोमेमुळी किडे भक्षिती | खांडुक जाल्यां किडे पडती |
पोटामध्ये  जंत होती  |  प्रत्यक्ष प्राणियांच्या ||५२||

कीड लागे दांतासी  |  कीड  लागे  डोळ्यांसी |
कीड लागे कर्णासी | आणी गोमाशा भरती ||५३||

गोचिड अशुद्ध सेविती | चामवा मांसांत घुसती |
पिसोळे  चाऊन  पळती  |  अकस्मात  ||५४||

भोंगें गांधेंलें चाविती | गोंबी जळवा अशुद्ध घेती |
विंचू  सर्प  दंश  करिती  |  कानटें फुर्सीं ||५५||

जन्मून देह पाळिलें | तें अकस्मात व्याघ्रें नेलें |
कां  तें  लांडगींच  भक्षिलें | बळात्कारें  ||५६||

मूषकें मार्जरें दंश करिती | स्वानें अश्वें लोले तोडिती |
रीसें  मर्कटें  मारिती  |  कासावीस  करूनी  ||५७||

उष्टरें डसोन उचलिती | हस्थी चिर्डून टाकिती |
वृषभ  टोचून  मारिती  |  अकस्मात  ||५८||

तस्कर तडतडां तोडिती | भूतें झडपोन मारिती |
असो  या  देहाची  स्थिती  |  ऐसी असे ||५९||

ऐसें शरीर बहुतांचें | मूर्ख म्हणे आमुचें |
परंतु खाजें जिवांचें | तापत्रैं बोलिलें ||६०||

देह परमार्थीं लाविलें | तरीच याचें सार्थक जालें |
नाहीं तरी हें वेर्थचि गेलें | नाना आघातें मृत्यपंथें ||६१||

असो जे प्रपंचिक मूर्ख | ते काये जाणती परमार्थसुख |
त्या मूर्खांचें लक्षण कांहीं येक | पुढे बोलिलें असे ||६२||

इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे
नरदेहस्तवननामसमास  दहावा ||१० ||
 

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Dasbodh दासबोध Dashak 1 Samas 10

॥   जय जय रघुवीर समर्थ ॥ ॥ श्रीमंत दासबोध ॥ दशक पहिला समास दहावा Samarth says in this Samasa that when this male body is found, so...