॥ जय जय रघुवीर समर्थ ॥ ॥श्रीमंत दासबोध ॥
दशक पहिला समास पाचवा
The enlightened saint is the ideal man of Srisamartha. He lives his life with the strong role of 'I am the soul'. The field of his experience is infinitely vast as it is terrestrial. By eradicating egoistic lust, he remains eternally very satisfied and immersed in the kingdom of bliss. He is a saint who shows the way to self-realization by giving his subconscious a very subtle, invisible and eternal self.
II दासबोध दशक १ - स्तवननाम
समास ५ - संतस्तवन II
॥श्रीराम॥
आतां वंदीन सज्जन | जे परमार्थाचें
अधिष्ठान | जयांचेनि गुह्यज्ञान | प्रगटे जनीं ||१||
जे वस्तू परब दुल्लभ जयेचा अलभ्य लाभ
तेंचि होये सुल्लभ | संतसंगे करूनी ||२||
वस्तू प्रगटचि असे | पाहातां कोणासींच न दिसे |
नाना साधनीं सायासें | न पडे ठाईं ||३||
जेथें परिक्षवंत ठकले | नांतरी डोळसचि अंध
जाले | पाहात असतांचि चुकले | निजवस्तूसी ||४||
जें दीपाचेनि दिसेना | नाना प्रकाशें
गवसेना | नेत्रांजनेंहि वसेना | दृष्टीपुढें ||५||
सोळाकळी पूर्ण शशी | दाखऊं शकेना वस्तूसी |
तीव्र आदित्य कळाराशी | तोहि दाखवीना ||६||
जया सूर्याचेनि प्रकाशें | ऊर्णतंतु तोहि दिसे |
नाना सूक्ष्म पदार्थ भासे | अणुरेणादिक ||७||
चिरलें वाळाग्र तेंहि प्रकाशी | परी तो दाखवीना
वस्तूसी | तें जयाचेनि साधकांसी | प्राप्त होये ||८||
जेथें आक्षेप आटले | जेथें प्रेत्न प्रस्तावले |
जेथें तर्क मंदावले | तर्कितां निजवस्तूसी ||९||
वळे विवेकाची वेंगडी | पडे शब्दाची बोबडी |
जेथें मनाची तांतडी | कामा नये ||१०||
जो बोलकेपणें विशेष | सहस्र मुखांचा जो शेष |
तोहि सिणला निःशेष | वस्तु न संगवे ||११||
वेदें प्रकाशिलें सर्वही | वेदविरहित कांहीं नाहीं |
तो वेद कोणासही | दाखऊं सकेना ||१२||
तेचि वस्तु संतसंगें | स्वानुभवें कळों लागे |
त्याचा महिमा वचनीं सांगे | ऐसा कवणु ||१३||
विचित्र कळा ये मायेची |परी वोळखी न संगवे|
वस्तूची | मायातीता अनंताची | संत सोये सांगती||१४||
वस्तूसी वर्णिलें नवचे | तेंचि स्वरूप संतांचें |
या कारणे वचनाचें | कार्य नाही ||१५||
संत आनंदाचें स्थळ | संत सुखचि केवळ |
नाना संतोषाचें मूळ | ते हे संत ||१६||
संत विश्रांतीची विश्रांती | संत तृप्तीची निजतृप्ती |
नातरी भक्तीची फळश्रुती | ते हे संत ||१७||
संत धर्माचें धर्मक्षेत्र | संत स्वरूपाचें सत्पात्र |
नातरी पुण्याची पवित्र | पुण्यभूमी ||१८||
संत समाधीचें मंदिर | संत विवेकाचें भांडार |
नातरी बोलिजे माहेर | सायोज्यमुक्तीचें ||१९||
संत सत्याचा निश्चयो | संत सार्थकाचा
जयो | संत प्राप्तीचा समयो | सिद्धरूप ||२०||
मोक्षश्रिया आळंकृत | ऐसे हे संत श्रीमंत |
जीव दरिद्री असंख्यात | नृपती केले ||२१||
जे समर्थपणे उदार |जे कां अत्यंत दानशूर |
तयांचेनि हा ज्ञानविचार | दिधला नवचे ||२२||
माहाराजे चक्रवती | जाले आहेत पुढें होती |
परंतु कोणी सायोज्यमुक्ती | देणार नाहीं ||२३||
जे त्रैलोकी नाही दान | ते करिती संतसज्जन |
तयां संतांचें महिमान | काय म्हणौनि वर्णावें ||२४||
जें त्रैलोक्याहून वेगळें | जें वेदश्रुतीसी नाकळे |
तेंचि जयांचेनि वोळे | परब्रह्म अंतरीं ||२५||
एसी संतांची महिमा | बोलिजे तितुकी उणी उपमा |
जयांचेनि मुख्य परमात्मा | प्रगट होये ||२६||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे
संतस्तवननाम समास पांचवा || ५ ||
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