॥ जय जय रघुवीर समर्थ ॥ ॥श्रीमंत दासबोध ॥
दशक पहिला समास सातवा
Samarth has explained the importance of the poet in this context. Poets and writers are of great importance in human life in terms of preserving eternal values, setting good ideals before the people. The poet is the God incarnate in the form of Vedas. The heart of the poet is Saraswati's own home, said Samarth.
समर्थानी या समासात कवीचे महत्व समजावून सांगितले आहे. चिरंतन मूल्यांचे जतन करणे, उत्तम आदर्श लोकांसमोर ठेवणे या दृष्टीने मानवी जीवनांत कवीना व साहित्यिकांना मोठे महत्व असते. कवि म्हणजे वेदरूपाने अवतरलेला परमेश्वरच होय.काविचें अंत: कारण म्हणजे सरस्वतीचें स्वत:च्या मालकीचे राहतें घरच समजावें असे समर्थानी या समासात सांगितले आहे.
II दासबोध दशक १ - स्तवननाम
समास ७ - कावेश्वरस्तवन II
॥श्रीराम॥
आतां वंदूं कवेश्वर | शब्दसृष्टीचे
ईश्वर | नातरी हे परमेश्वर | वेदावतारी ||१||
कीं हे सरस्वतीचें निजस्थान | कीं हे नाना कळांचें
जीवन | नाना शब्दांचें भुवन | येथार्थ होये ||२||
कीं हे पुरुषार्थाचें वैभव | कीं हे जगदेश्वराचें महत्व |
नाना लाघवें सत्कीर्तीस्तव | निर्माण कवी ||३||
कीं हे शब्दरत्नाचे सागर | कीं हे मुक्तांचें मुक्त
सरोवर | नाना बुद्धीचे वैरागर | निर्माण जाले ||४||
अध्यात्मग्रंथांची खाणी | कीं हे बोलिके चिंतामणी |
नाना कामधेनूचीं दुभणीं | वोळलीं श्रोतयांसी ||५||
कीं हे कल्पनेचे कल्पतरु | कीं हे मोक्षाचे मुख्य
पडीभरु | नाना सायोज्यतेचे विस्तारु | विस्तारले ||६||
कीं हा परलोकींचा निजस्वार्थु | कीं हा योगियांचा गुप्त
पंथु | नाना ज्ञानियांचा परमार्थु | रूपासि आला ||७||
कीं हे निरंजनाची खूण | कीं हे निर्गुणाची वोळखण |
माया विलक्षणाचें लक्षण | ते हे कवी ||८||
कीं हा श्रुतीचा भावगर्भ | कीं हा परमेश्वराचा अलभ्य
लाभ | नातरी होये सुल्लभ | निजबोध कविरूपें ||९||
कवि मुमुक्षाचें अंजन | कवि साधकांचें साधन |
कवि सिद्धांचें समाधान | निश्चयात्मक ||१०||
कवि स्वधर्माचा आश्रयो | कवि मनाचा मनोजयो |
कवि धार्मिकाचा विनयो | विनयकर्ते ||११||
कवि वैराग्याचें संरक्षण | कवि भक्तांचें भूषण |
नाना स्वधर्मरक्षण | ते हे कवी ||१२||
कवि प्रेमळांची प्रेमळस्थिती | कवि ध्यानस्थांची ध्यान-
मूर्ति | कवि उपासकांची वाढ कीर्ती | विस्तारली ||१३||
नाना साधनांचे मूळ | कवि नाना प्रेत्नांचें फळ |
नाना कार्यसिद्धि केवळ | कविचेनि प्रसादें ||१४||
आधीं कवीचा वाग्विलास | तरी मग श्रवणीं तुंबळे
रस | कवीचेनि मतिप्रकाश | कवित्वास होये ||१५||
कवि वित्पन्नाची योग्यता | कवि सामर्थ्यवंतांची
सत्ता | कवि विचक्षणाची कुशळता | नाना प्रकारें ||१६||
कवि कवित्वाचा प्रबंद | कवि नाना धाटी मुद्रा
छंद | कवि गद्यपद्यें भेदाभेद | पदत्रासकर्ते ||१७||
कवि सृष्टीचा आळंकार | कवि लक्ष्मीचा शृंगार |
सकळ सिद्धींचा निर्धार | ते हे कवी ||१८||
कवि सभेचें मंडण | कवि भाग्याचें भूषण |
नाना सुखाचें संरक्षण | ते हे कवी ||१९||
कवि देवांचे रूपकर्ते | कवि ऋषीचें महत्व वर्णिते |
नाना शास्त्रांचें सामर्थ्य ते | कवि वाखाणिती ||२०||
नस्ता कवीचा व्यापार | तरी कैंचा अस्ता जगोद्धार |
म्हणौनि कवि हे आधार | सकळ सृष्टीसी ||२१||
नाना विद्या ज्ञातृत्व कांहीं | कवेश्वरेंविण तों
नाहीं | कवीपासून सर्वही | सर्वज्ञता ||२२||
मागां वाल्मीक व्यासादिक | जाले कवेश्वर अनेक |
तयांपासून विवेक | सकळ जनासी ||२३||
पूर्वीं काव्यें होतीं केलीं | तरीच वित्पत्ती प्राप्त झाली |
तेणे पंडिता आंगीं बाणली | परम योग्यता ||२४||
ऐसें पूर्वीं थोर थोर | जाले कवेश्वर अपार |
आतां आहेत पुढें होणार | नमन त्यांसी ||२५||
नाना चातुर्याच्या मूर्ती | कीं हे साक्षात् बृहस्पती |
वेद श्रुती बोलों म्हणती | ज्यांच्या मुखें ||२६||
परोपकाराकारणें | नाना निश्चय अनुवादणें |
सेखीं बोलीले पूर्णपणें | संशयातीत ||२७||
कीं हे अमृताचे मेघ वोळले | कीं हे नवरसाचे वोघ
लोटले | नाना सुखाचें उचंबळलें | सरोवर हे ||२८||
कीं हे विवेकनिधीचीं भांडारें | प्रगट जालीं मनुष्या-
कारें | नाना वस्तूचेनि विचारें | कोंदाटले हे ||२९||
कीं हे आदिशक्तीचें ठेवणें | नाना पदार्थास आणी उणें |
लाधलें पूर्व संचिताच्या गुणें | विश्वजनासी ||३०||
कीं हे सुखाचीं तारुवें लोटलीं | आक्षै आनंदे उतटलीं |
विश्वजनास उपेगा आलीं | नाना प्रयोगाकारणे ||३१||
कीं हे निरंजनाची संपत्ती | कीं हे विराटाची योग
स्थिती | नातरी भक्तीची फळश्रुती | फळास आली ||३२||
कीं हा ईश्वराचा पवाड | पाहातां गगनाहून वाड |
ब्रह्मांडरचनेहून जाड | कविप्रबंदरचना ||३३||
आतां असो हा विचार | जगास आधार कवेश्वर |
तयांसी माझा नमस्कार | साष्टांग भावें ||३४||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे
कवेश्वरस्तवननाम समास सातवा || १.७ ||
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